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Showing posts from June, 2014

तुम आए हो जीवन में यूं चुपके से

तुम आए हो जीवन में यूं चुपके से कमल खिल गए है लफ्ज़ खो गए है शुक्रिया कहूं मैं कैसे समझ में ना आए होंठ भी अब मेरे कम्पित हो रहे है !! वो धीमे से तेरा यूं मुस्कुराना फिर शाखों का बढ़ना और कलियों का गाना वो भौरों का गुंजन तितलियों का मंडराना तुम्ही से सब कुछ तुम्ही में समाना !! तुम आए हो जीवन में यूं चुपके से कमल खिल गए है लफ्ज़ खो गए है !! इस भौतिक जगत में सब कुछ है नश्वर मैं ही शाश्वत एक अनश्वर सोचकर आज मैंने यह निर्णय लिया है स्वयं को ही तुझे समर्पित किया है !! तुम आए हो जीवन में यूं चुपके से कमल खिल गए है लफ्ज़ खो गए है !! ..............

Loving Alone

    Alone equals to face yourself. Facing yourself needs to be alone. The whole Universe integrated within "I", being with "I", doesn't mean alone.   Alone equals to be strong. being strong needs to be alone. The whole fear is to rescue the "I", being with "I" doesn't mean alone.   Alone equals to restore yourself. Restoring yourself needs to be alone. The whole combat for storing to the "I" being with "I" doesn't mean alone.   Alone equals to loving yourself. Loving yourself needs to be alone. The whole stress is who cares to the "I" being with "I" doesn't mean alone.   Alone equals to observe yourself. Observing yourself needs to be alone. The whole observation in absence of the "I" being with "I'' doesn't mean alone.   Alone equals to be isolate. being isolate needs to be alone. The whole crowd is mul

This way to do the Fun

I do nothing, but things are being done. and I live with fun I live with fun. I don't breathe, but Breathing is being done. and I live with fun I live with fun. I don't digest food, but digestion is being done. and I live with fun I live with fun. I don't walk, but walking is being done. and I live with fun. I live with fun. I don't meditate, but meditation is being done. and I live with fun. I live with fun. I don't sleep, but sleeping is being done. and I live with fun I live with fun. I don't do fun. but fun is being done. and I live with fun. I live with fun. ...........

नवां सूरज

जूही कमल गुलाब केतकी सी पायी तूने सुन्दर काया भवरें जिस पर मंडराया करते त्राहि त्राहि करती तेरी काया !! उन भवरों का भला सोचती निर्भीक  हो तन चुसने से यह नाजुक पंखुड़िया कैसे सह पाएंगी इन कपटी भवरों के गुंजन को !! प्रतिदिन नवें सूरज में तू उगती है फिर सृष्टि का पालन करती है करोडो जीवो को मृत कर देती  है फिर भी पाप पुण्य से मुक्त तू रहती है !! ठंडी पवन और वर्षा के गीतो में जब तू अपनी कमर थिरकाती है मोरनी सी तुझ सुन्दर बाला पर प्रकृति भी न्योछावर हो जाती है !! गंगा जल सी पवित्र है तू फिर क्यों अपने को पापी ठहराती है ए गीता की शपथ लेने वालो क्या गीता भी कभी झूठी कहलाती है !! मंदिर मस्जिद चर्च गुरुद्वारे सभी तेरी प्रतिभूतियां  है फिर पूजा पाठ से तुझे क्या करना है जब देह में ही तेरी शिवालय बना है !! जब इन तरसती बाहों से तेरा आलिंगन करना चाहता हूँ कोमलता को देख कर तेरी निर्भुज सा हो जाता हूँ  !! इन्द्रधनुष के इन सात रंगो की बनायी जो मैंने ये सुन्दर सुशोभित माला है धारण करके जब तू इसको निकलेगी मेरी स्मृतियाँ तुझमे यूं झलकेंगी फिर याद तुझे मैं आऊंगा आंसू बनकर तेरी आँखों में धरती

औरत

सोलह  श्रृंगार किये सजती सवरती ये  औरत चेहरों पे चेहरे सजाती है यह औरत !! संसार वाटिका में अति  उत्तम पुष्प ये  औरत रुई सा ह्रदय लिए मन लुभाती है ये औरत !! कुछ कहे बिना भी रह नहीं पाती ये औरत पर जहन में कितने राज़ दफ़न करती है ये औरत !! द्रढ पुरुष को भी भिक्षुक कर देती ये औरत अत्यंत  विश्वसनीय और  अविश्वसनीय है ये  औरत !! महान आघातों को क्षमा करती ये औरत पर तुच्छ चोटों को नहीं भूलती है ये औरत !! काव्य ग़ज़लों के पीछे चिपकी ये औरत दूध में चीनी की तरह घुलती है ये औरत !! जीव और सत्य के बीच माया बनी ये औरत आँखों से उतरकर साँसों में समा जाती है ये औरत !! जीवन भी अधूरा है नमो बिन ये औरत तभी तो अर्धनारेश्वर का आधा अंग बनी है ये औरत !! ____________________________________________________________  Newspaper Copy of this Poem    

माँ गर्भ के नौ मास

१ अंधकार ही अंधकार माँ    अंधकार में झुलस रहा मैं    माँ तेरी अंतस की गर्मी में    उजियारे को तरस रहा मैं !! २ प्रचण्ड वेदनाओ को सहकर    तूने मुझे प्रकाश दिया    फिर अर्घ चढ़ाऊँ क्यों सूरज को    जब तूने मुझे प्रकाश दिया !! ३ मैं तुझको अर्घ चढ़ाऊंगा    तेरे ही गुण गाऊंगा    वेदना के बदले में    तेरे ममता भरे प्यार को    जन्मो जन्मों न भुला पाऊंगा !! ४ भूख प्यास से व्याकुल मैंने    जब तेरे अंतस में रुदन किया    तीखे अन्न को तजकर तूने    माँ मुझको पोषित तृप्त किया !! ५ माँ तेरे दिल की धड़कन    मेरे कानो में आकर कहती थी    कि मेरी एक झलक पाने को तू    कैसे तरसा करती थी !! ६ तमसो माँ ज्योतिर्गमय का    जब तेरे अंतस में,    मैंने पठन किया    न चाहकर भी माँ तूने मुझको    अपनी देह से पृथक किया!! ७ माँ तेरी इस पीड़ा को    मैं जड़ कैसे समझ पाऊंगा    अपने इन तुच्छ शब्दों से    कह कैसे बयां कर पाऊंगा !! ८ माँ तुझसे अब पृथक होकर जाना    यह दुनिया छल कपट भरी माया है    इसके झूठे उजियारे से तो    तेरे अंतस में तम का साया  है !! ९ ज्योतिर् माँ तमसोगमय