तुम आए हो जीवन में यूं चुपके से कमल खिल गए है लफ्ज़ खो गए है शुक्रिया कहूं मैं कैसे समझ में ना आए होंठ भी अब मेरे कम्पित हो रहे है !! वो धीमे से तेरा यूं मुस्कुराना फिर शाखों का बढ़ना और कलियों का गाना वो भौरों का गुंजन तितलियों का मंडराना तुम्ही से सब कुछ तुम्ही में समाना !! तुम आए हो जीवन में यूं चुपके से कमल खिल गए है लफ्ज़ खो गए है !! इस भौतिक जगत में सब कुछ है नश्वर मैं ही शाश्वत एक अनश्वर सोचकर आज मैंने यह निर्णय लिया है स्वयं को ही तुझे समर्पित किया है !! तुम आए हो जीवन में यूं चुपके से कमल खिल गए है लफ्ज़ खो गए है !! ..............
खुद से पककर जब तू टूटेगा न दिशा न कोई तेरा मंज़र होगा ले जाएँगी हवाएं जिस धरा पे तुझे वही तेरा एक मात्र निशाँ होगा