ये मौसम इतना रुखा क्यों इस बारिश में भी सूखा क्यों ज्वाला जो ये फटने को है फिर अग्नि इसकी शांत है क्यों इस शोर में इतना सूनापन है हर शब्द से पहले ख़ामोशी क्यों इन आँखों में नींद नहीं जब तू सपनो को फिर पाले क्यों सच्चाई पर चलकर भी तू इन अंगारो से गुजरो क्यों ये मौसम इतना रुखा क्यों इस बारिश में भी सूखा क्यों ******
खुद से पककर जब तू टूटेगा न दिशा न कोई तेरा मंज़र होगा ले जाएँगी हवाएं जिस धरा पे तुझे वही तेरा एक मात्र निशाँ होगा